क्यों है अब मायका पराया? लड़कियों का घर कौनसा? यह कैसा न्याय?

जब जन्म लिया तब अंदाज़ा भी नहीं था की आगे आने वाली आधी ज़िन्दगी उन लोगों के साथ और उनके लिए बीतेगी जिन्हें मैं जानती भी नहीं। वो लोग जिन्हें जानने, समझने और घर कहने में ज़िन्दगी के 20 साल लग गए, वह तो असल में पराये निकले? यही कहता है ना समाज??
शादी के बाद लाखों का घर होके भी कभी कभी ऐसा लगता है मानो कोई अपना घर ही नहीं। यह कैसा न्याय है?

क्या आपने कभी सोचा है की आप उठेंगे और सारे नए चेहरे, सारे नए रिश्ते - सबकुछ नया पाएंगे ! कहते हैं की लोग जब थक जाते हैं तो उन्हें अपने घर में सुकून मिलता है। जब बात बहुओं की आती है तो सबसे पहला प्रश्न यह रहता है की घर कौनसा है ? जिस घर को घर माना वह तो पराया हो गया। महीनो में एक बार उस घर में जाने का सुख मिलता है।और यह घर, जिसे मैंने जानना अभी शुरू किया है, उसे कैसे अपना कह दूँ।फिर अपना क्या और पराया क्या? दुनिया ने कहा " ससुराल ही बेटी का घर होता है" और लोगों ने बताया की "बहुएं कभी बेटियाँ नहीं बन सकती। तो कहाँ हैं हम? ये कैसी दुविधा है?
असल बात तो यह है की बेटियां कभी परायी नहीं हो सकती। अपने अधिकार को समझें ,आपने जीवन बिताने के लिए एक जीवन साथी को चुना है। एक नया घर पाया है ना की अपना जन्म घर खोया है।बेटियां कभी परायी नहीं हो सकती। रहने की जगह और जिम्मेदारियां का बदलना यदि पराया होना होता है तो फिर लड़के सबसे ज़्यादा पराये हो जायेंगे।

जिनके आप अंश हैं, दुनिया की कोई ताकत आपको उनसे अलग नहीं कर सकती। जब लड़के घर से दूर बाहर रहते हैं तब क्या उन्हें पराया कहा जाता है?
क्या नयी जिम्मेदारियां उठाना पराया कहलाना होता है। समाज की इसी हट के वजह से हम बेटियों का कोई घर नहीं बचता।
आइये आज एक वादा करते हैं, हम कभी भी अपने आप को या किसी भी बेटी को पराया नहीं कहेंगें। माँ - बाप हमारे हैं और वह घर भी हमारा ही रहेगा।यही सच भी है।
